हरिद्वार
हरिद्वार गड़वाल क्षेत्र का अति विशिष्ट नगर र्है, जो कि शिवालिक श्रेणी नील व विल्व
पर्वतों के मध्य गंगाा के दहिने तट पर स्थित है। हरिद्वार का गठन जिले के रूप में 28श्
दिसम्बर 1988 को किया गया था। पहले यह साहरनपुर जनपद में था पर गठन के
बाद इसे गडवाल मण्डल का एक जिला बना दिया गया है।
पुराणों में इसे गंगद्वार, देवताओं का द्वार, स्वर्ग द्वार, मायापुरी, चार धामों का द्वार, स्वर्ग
द्वार , मायापुरी व मायाक्षेत्र कहा जाता था।
हरिद्वार के प्रमुख धार्मिक स्थल
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हरिद्धार का हर की पौढ़ी की शाम का दृश्य |
2-कुशावर्त घाट
3-मायादेवी मन्दिर
4-चण्डीदेवी मन्दिर(पौढ़ी में)
5- बिल्वकेश्वर मन्दिर
6-भीमगोढ़ा कंुड
7-सप्तश्रृषि आश्रम
8-शान्तिकुंज
9-कनखल
10-रूड़की
हरिद्वार के प्रमुख सस्थान
1-सन्ट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीयूट, रूड़की
2-स्ट्रक्चरल इंजीनियरींग रिसर्च सेन्टर, रूड़की
3-इण्डस्ट्रियल टैक्सोलाजिकल रिसर्च सेन्टर, रूड़की
देहरादून
देहरादून नगर बाहा एवं मध्य हिमालय के बीच स्थित दून घाटी में बसा र्है। इसका
आकार दोने(द्रोण) जैसा है। 1817 में इसे जिला बनाकर मेरठ मण्डल में रखा गया।1957 से यह
गडवाल मण्डल में है
देहरादून जिले प्रमुख दर्शनीय स्थल

2-श्री गुरू रामराय दरबार साहिब
3-टपकेश्वर महादेव
4- लक्ष्मण सिद्व
5-चन्द्रबनी
6-भागीरथी रिर्सोट्स
7-फन वैली
8-मालसी डियर पार्क
9-राजाजी राष्ट्रीय पार्क
10-सहस्त्रधारा
11-जौनसार बावर
1.कालसी
2.लाखामण्डल
3.बैराटगड़
4.हनोल
5.पर्वतों की रानी मसूरी
मसूरी के कुछ प्रमुख स्थान
1-भद्राज मन्दिर
2-ज्वालाजी मन्दिर
3-सुरकंडा देवी
4-मसूरी झील
5-कैप्पटी फॉल
6-श्रृषिकेष
श्रृषिकेष के कुछ प्रमुख स्थान
1-तपोवन
2-लक्ष्मण झूला
3-त्रिवेणी घाट
4-नीलकंठ महादेव
5-भरत मंदिर
6-कैलाश निकेतन मंदिर
7-शिवानंद झूला
8-शत्रुधन मंदिर
9-शिवानंद आश्रम
10-मुनि की रेती
उत्तरकाशी
देवभूमि के नाम से विख्यात यह नगर भागीरथी नदी के दाईं ओर स्थित है। उत्तरकाशी का प्राचीन नाम बाडाहाट है
उत्तरकाशी के प्रमुख दर्शनीय स्थल निन्नलिखीत हैं
1-गंगात्री-यहां भागीरथी का एक मन्दिर स्थापित है
जिसमें गंगा, लक्ष्मी, पार्वती व अन्नापूर्णादेवी की
मूर्तियां स्थापित हैं कहा जाती है कि यहां राजा भागीरथ
ने स्वर्ग से गंगा को पृथ्वी पर लाने के कठोर तपस्या
की थी व स्वर्ग से पृथ्वी पर उतरती गंगा को इसी

था। इस मन्दिर को निर्माण 18 शताब्दि में गोरखा
सेनापति अमरसिंह थापा ने कराया तथा पुनरूदार
जयपुर के राजा माधो सिंह ने कराया था। इस मन्दिर
के कपाट प्रतिवर्ष अप्रैल में अक्षय तृतीया को खुलते हैं।
यहां के अन्य निकटतम दर्शनीय स्थलों में सूर्य कूण्ड , गौरीकुण्ड, पंतगाना, भैरव झाप स्थित हैं।
2-यमुनात्री-यमुना के बांए तट पर स्थित यमुनोत्री मंदिर का निर्माण 1919 में गढ़वाल नरेश प्रतापशाह ने तथा पुननिर्माण जयपुर की महारानी ने करायी थी।
3-विश्वनाथ मन्दिर
4-गंगानी अर्थात गरमपानी यहां गंघक युक्ज जल का स्त्रोत है
5-हनुमान चटटी-यहां से डोडी ताल का ट्रैकिंग का मार्ग शुरू होता है
6-महासू मन्दिर-उत्तरकाशी से कुछ दूरी पर स्थित हनोल में महासू(महाशिव) देवता का प्रसिद्ध मन्दिर है
7-बाड़ाहाट-यहां एक प्राचीन शक्तिपीठ है जहॉं एक त्रिशूल गढ़ा है
8-नचिकेता ताल
9-दयारा बुग्याल-यह अत्यन्त मनोहारी, रमणीक, व पर्यटन से महत्वपूर्ण स्थान है
10-हरकीदून
चमाली
चमोली जनपद का मुख्यालय गोपेश्रवर में है। 1960 में गढ़वाल जनपद से अलग करके चमोली को नया जनपद बनाया गया। यहां पर 7वीं-8वीं सदी का एक विशाल शिव मन्दिर है।इस जिले के प्रमुख दर्शनीय स्थल इस प्रकार हैं
पंचबदरी- पांचो बदरी(विष्णु भगवान) चमोली जिले में ही स्थित हैं।
1-बद्रीनाथ
2-आदिबदरी
3-भविष्यबदरी
4-वृद्व बदरी
5-योगध्यान बदरी
पंचकेदार-पंच केदारों में तुंगनाथ,रूद्रनाथ,मदमहेश्वर,कल्पेश्वर, एवं केदारनाथ हैं।वर्तमान में चमोली जनपद में रूद्रनाथएवं कल्पेश्वर महादेव मन्दिर स्थित है। शेष तीन रूद्र्रप्रयाग जिले में हैं
पंचप्रयाग-पवित्र नदियों के संगम पर स्थित प्रयागों का धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व है। गढ़वाल में अलकनन्दा एवं विभिन्न नदियों के संगम पर स्थित पंच प्रयाग विशेष महत्व के हैं। ये निम्न हैं-
1-विष्णुप्रयाग
2-नन्दप्रयाग
3-कर्णप्रयाग
4-रूद्रप्रयाग
5-देवप्रयाग
वसुंधरा प्रपात-चमोली के अंतिम गांव माणा कुछ दूरी पर ग्लेशियरों व उॅची चटटानों पर स्थित है।
गैरसेंण-चमोली जिले में गैरसेंण उत्तराखंड के राज्य निर्माण की मांग से ही महत्वपूर्ण माना जाता रहा है
गैरसेंण को रमाशंकर कौशिक समिती ने उत्तराखंड की भावी राजधानी हेतु उपयुक्त स्थान माना गया है।
यह स्थान चाय बागानों के लिए प्रसिद्व है।
ग्वालदम-बागेश्वर सीमा पर स्थित चमोली का यह स्थल प्राकृतिक सुषमा के लिए प्रसिद्व है।
यहां से नन्दाघुंुटी,नन्दादेवी, व त्रिशूल हिमशिखरों का मनोरम दृश्य दिखाई देता है।
ग्वालदम सेब एवं चाय उत्पादन के लिए भी प्रसिद्व है।
जोशीमठ-जोशीमठ नाम संस्कृत शब्द ज्योर्तिमय का विकृत रूप है। जिसका अर्थ है शिव के ज्योर्तिलिंग का स्थल।
प्राचीन काल में इसे येषि कहा जाता था। इस मठ की स्थापना आदि गुरू शंकराचार्य ने की। हिंदुओ में यह विश्वास है?
कि शरद् श्रृतु में भगवान बद्रीनाथ(विष्णु) यहां स्वयं विश्राम करते हैं।
जोशीमठ में ही शंकराचार्य ने पूर्णागिरी देवी पीठ की स्थापना की।
हेमकुंड साहिब-यह सात भव्य बर्फ से ढके पहाड़ों से धिरा हुआ है, जिनको हेमकुण्ड
पर्वत कहा जाता है।हाथी पर्वत एवं सप्तश्रिंग पर्वत शिखरों के हिमनद झील को जल
पाषित करते हैं।झील से हिमगंगा नामक छोटी नदी निकलती र्है।झील के किनारे एक
लक्ष्मण मन्दिर भी है।
रूपकुण्ड-यह स्थल चमोली जनपद के विकासखण्ड देवाल से 25 किमी दूर त्रिशूल पर्वत
की तलहटी पर स्थित है। यहाँ पर ढाई किमी. व्यास की परिधी में नरकंकाल फैले हुए हैं।
चांदपुर गढ़ी- गढ़वाल के 52 गढ़ों में अभी तक केवल यही एक गढ बचा है इसे 9वीं शदी
का माना जाता है।
फूलों की धाटी-श्रृषिकेश-बद्रीनाथ मार्ग मार्ग पर स्थित फूलों की घाटी को वर्ष 2005 में विश्व
धरोहर में शामिल कर लिया गया है।
औली-जोशीमठ से सड़क मार्ग से 1.2 किमी की दूरी पर रोपवे (1993 से शुरू) 4किमी की दूरी पर स्थित
गर्मी की छुटयों बिताने के लिए मनोरंजक स्थान है।
नन्दादेवी-नन्दादेवी जोशीमठ-मलारी मार्ग पर लगभग 21 किमी दरी पर स्थित है। यहां
नन्दादेवी का सिद्वपीठ मन्दिर है।
भारत सरकार ने नन्दादेवी जैव मण्डल रिजर्व को राष्ट्रीय पार्क के रूप में स्थापना 1982 में की थी
1988 में इसे संयुक्त राष्ट्र विरासत दिवस के रूप में पंजीकृत किया गया।
त्रिशूल पर्वत-रानीखेत,अल्मोड़ा तथा ग्वालदम से यह नुकीला दिखाई देता है।
माणा- चमोली के सीमा पर स्थित गांव भारत की सीमा पर अन्तिम बसा गांव है। यहां
पर अलकनंदा व सरस्वती नदी का संगम होता है। इसे केशव प्रयाग कहा जाता है।
यहां के दर्शनीय स्थलों में गणेश गुफा,व्यास गुफा, भीम पुल मुख्य हैं।
रूद्रप्रयाग
रूद्रप्रयाग बद्रीनाथ-केदारनाथ यात्रा का मुख्य पड़ाव एवं पंच प्रयागों में एक है। यहां अलकनंदा
व मंदाकिनी नदियों का संगम है।
18 सितम्बर,1977 को टिहरी,पौड़ी, चमोली जिलों को मिलाकर इसे जिला बनाया गया था।
इस जिले के प्रमुख दर्शनीय स्थल इस प्रकार हैं
1-केदारनाथ-
2-मदमहेश्वरनाथ-
3-ऊखी मठ
4-सोनप्रयाग
5-गौरीकुंड
6-अगस्तमुनि
7-गुप्तकाशी
8-कोटेश्वर महादेव
9-बाणसुर मन्दिर
10-कालीमठ सिद्वपीठ
1-केदारनाथ-रूद्र प्रयाग में स्थित केदारनाथ द्वादश ज्योर्तिर्लिगों में से एक है।
यह मन्दिर खर्चाखंड और भरतखंड शिखरों के पास केदार शिखर पर स्थित है।
जिसके वाम पर पुरंदर पर्वत है। यह मंदिर कत्यूरी निर्माण शैली का है।
तुंगनाथ उत्तराखण्ड में सर्वाधिक ऊॅचाई पर स्थित देवमन्दिर है।
5-गौरीकुंड-गौरीकुंड केदारनाथ मार्ग का अन्तिम बस स्टेशन है। यहां यात्री
गर्म जल के कुण्ड से स्नान करते है।
6-अगस्तमुनि-यह मन्दाकिनी नदी के तट पर स्थित है। जहां अगस्त श्रृषि ने वर्षों तक तप किया था।
9-बाणसुर मन्दिर(लमगौड़ी-बामसू)-गुप्तकाशी-बसु केदार मार्ग पर प्राचीन बाणासुर मन्दिर राजकीय
इंटर कालेज लमगौड़ी से मिला है। प्राचीन मान्यता के अनुसार यह मन्दिर असुर राजा बाणासुर के द्वारा
ही बनायी गयी थी।
टिहरी गडवाल
भागीरथी व भिलंगना नदियों के संगम पर स्थित टिहरी नगर, जो कि अब टिहरी डैम से विलिन हो चुका है,
की स्थापना 1815 में गढ़वाल नरेश सुदर्शन शाह ने टिहरी राज्य की राजधानी के रूप मे की थी।
देश की स्वतंत्रता के बाद 1 अगस्त, 1949 को टिहरी गढ़वाल एक पृथक् जनपद के रूप में गठित हुआ।
टिहरी बांध के निर्माण स्वरूप एक नया नगर श्रृषिकेष से 60 किमी दूर बसाया गया व पुर्नवास किया गया।
टिहरी के प्रमुख स्थल इस प्रकार हैं
1-देवप्रयाग
2-चन्द्रबदनी
3-चम्बा
4-कैम्पटी जलप्रपात
5-सुरकंडा देवी
6-बूढ़ा केदार
7-नागटिब्बा
8-विश्वनाथ गुफा
देवप्रयाग-देवप्रयाग भागीरथी(सास) और अलकनन्दा(बहु) नदियों के संगम पर तथा श्रृषिकेश-बद्रीनाथ मार्ग पर
स्थित है। इस नगर के निकट दो झूला पुल है जो क्रमशः भागीरथी तथा एक अलकनन्दा पर हैं यहां पर 2
कुण्ड हैं जिन्हें क्रमशः बहमकुण्ड और वशिष्ट कुण्ड कहते हैं। पंचप्रयागों में सर्वाधिक धार्मिक महत्व का है।
चन्द्रबदनी-टिहरी से श्रीनगर मोटर मार्ग पर स्थित एक मन्दिर है। तीर्थ स्थली मां चन्द्रबदनी मन्दिर चन्द्रकूट
पर्वत पर स्थित है। यहां पर प्राकृतिक श्रीयन्त्र स्थापित है।
चम्बा-यह अत्यन्त मनोरम दृश्यों वाला पवित्र भागीरथी घाटी पर स्थित है।
धनाल्टी
कैम्पटी जलप्रपात-मसूरी-यमुनोत्री मार्ग पर मसूरी से 15 किमी दूर टिहरी जिले में स्थित विशालतम एवं मनोहरतम
जल प्रपात होने की विशिष्टता रखता है।
बूढ़ा केदार-यह स्थल भगवान केदानाथ का प्राचीन एवं भव्य मन्दिर है।
विश्वनाथ गुफा-केदानाथ मार्ग पर विश्वनाथ पर्वत पर यह गुफा है। यह आदि शंकराचार्य की तपस्थली है।
पौढ़ी गढवाल
1815 से 1840 तक ब्रिटीश गढ़वाल की राजधानी श्रीनगर रही। 1840 में राजधानी श्रीनगर से पौढ़ी में स्थानान्तरित
की गई और पौढ़ी को ब्रिटीश गढ़वाल का एक जिला बनाया गया। स्वतंत्रता के बाद इसे गढ़वाल मण्डल का मुख्यालय
बनाया गया।1992 में इसे हिल स्टेशन बनाया गया।
1960 में इससे काटकर चमोली जिले की तथा 1997 में रूद्रप्रयाग जिले की स्थापना की गई।
पौढ़ी से हिमाच्छाादित हिमालय का अर्द्धवृत्ताकार रूप में जो व्यापक दृश्य दिखाई देता है, यह भारत के किसी भी
भाग से दिखाई नहीं देता।
इसके समीप क दर्शनीय स्थलों में क्यूंकालेश्वर,नागदेव,खिर्सू, ज्वालधाम, आदि उल्लेखनीय है।
रांसी में एक स्टेडियम का निर्माण किया गया है जो एशिया में दूसरा सबसे ऊँचाई पर स्थित स्टेडियम है।
24 दिसम्बर. 2001 से पौड़ी को देवप्रयाग से पुल से जोड़ दिया गया है।
इस जिले के प्रमुख दर्शनीय स्थल इस प्रकार हैं।
1-श्रीनगर
धार देवी मंदिर
सोम का भांडा
केशोराय मठ
शंकर मठ
कमलेश्वर मंदिर
2-कोटद्धार
कण्वाश्रम
कालीमठ(काली तीर्थ)
कालागढ़
सिद्धबली मंदिर
दुगड्डा
3-बिनसार महादेव
4-नीलकंठ महादेव
5-खिरसू
6-ज्वाला देवी
7-लैंसडाउन
8-तारकेश्वर मंदिर
देवलगढ़ मंदिर
देवलगढ़
कोट महादेव
श्रीनगर-श्रीनगर की स्थापना 1358 में गढ़वाल नरेश महिपतिशाह ने की थी। लेकिन राज्य की राजधानी यहां पर 1515 में
अजयपाल द्वारा स्थापित की गई।1804 से 1815 तक इस गोरखाओं का तथा 1815 से इस पर अंग्रेजो का अधिकार रहा।
स्वतंत्रता के बाद इसे पौढ़ी जिले का अंग बनाया ।
1973 में यहां गढ़वाल विश्वविधालय की स्थापना की गई।
श्रीनगर के प्रमुख स्थल इस प्रकार हैं
धार देवी मंदिर
सोम का भांडा
केशोराय मठ
शंकर मठ
कमलेश्वर मंदिर
कोटद्वार-यह गढ़वाल का प्रवेश द्वार है। जो कि समतल भूमि पर बसा है। यहां पौढ़ी गढ़वाल जिले का एकमात्र रेलवे स्टेशन है
यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थल इस प्रकार हैं
कण्वाश्रम-मालिनी नदी के तट पर कण्वाश्रम स्थित है। यहीं पर कालीदास ने अभिज्ञान शाकुन्तलम लिखी की रचना की थी।
कालीमठ-यह मंदिर सिद्वपीठ के रूप में जाना जाता है। शारदीय नवरात्र में यहां बहुत भीड़ रहती है।
कालागड़-यहां रामगंगा नदी पर निर्मित बांध दर्शनीय है।
बिनसर महादेव-यह मंदिर राजा कल्याण चन्द्र द्वारा बनवाया गया था। कार्तिक पूर्णिमा को यहां बड़ा मेंला लगता है। जिसमें कुमाऊ व गढ़वाल के
लोग सम्लित होते हैं।
नीलकंठ महादेव-यह मंदिर शिव जी का मंदिर है यहां पर शंभु-निशंभु नामक दो दर्शनीय पर्वत हैं।
खिरसू- पौढ़ी से 19 किमी दूर स्थित खिरसू प्रदूषण मुक्त एक शान्त पर्यटन स्थल है।
लैंसडाउन-भारतीय सेना के विख्यात गढ़वाल राइफल्स का कमांड आफिस यहीं पर स्थित है।
यहां पर प्रसिद्व कालेश्वर महादेव का मंदिर है। जिस कारण इस नगर को कालेश्वर भी कहा जाता है।
कोट महादेव-कोट महादेव का मंदिर पटटी सितोनस्यूं में स्थित है। यह स्थल महर्षि बाल्मीकि की तपस्थली रही है।
माना जाता है कि सीता यहां के फलस्वाड़ी गांव के मैदान में कार्तिकशुक्ल पक्ष द्वादशी के दिन धरती की गोद में समाई
थी।
नैनीताल
सरोवरी नगरी या झीलों की नगरी के नाम से प्रसिद्व यह नगर टिफिन टॉप, चायनापीक,लड़िया कांटा, स्नोव्यू,शेर का डांडा आदि उॅची उॅची पहाड़ीयों से धिरा हुआ है। यह नगर विदेशी पर्यटकों व सैलानियों के लिए मनोरम स्थान है। विश्व में सर्वाधिक झालों वाले पर्यटन स्थानों की श्रेणी में नैनीताल का स्थान है यह नगर 7 पहाड़ियों क्रमशः आयर पात, हाड़ीगडी, देवपात, चानापीक, स्नाव्यू, आलमसरिया, कांटा, शेर का डांडा से धिरा
हुआ है।नैनीताल के सम्बन्ध में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य इस प्रकार हैं-
1-1882 में काठगोदाम तक रेल लाइन तथा 1891 में जिला मुख्यालय बन जाने के बाद इस झील नगरी का तेजी से विकास हुआ।
2-9 नवम्बर,2000 को यहां उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय की स्थापना हुयी
3-यह 7 पहाडियों से धिरा हुआ है।
यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थल इस प्रकार हैं
नैनादेवी मन्दिर-प्राचीन नैना दैवी के मन्दिर का निर्माण श्री मोतीराम शाह जी ने कराया था। जो 1880 के भीषण भू-स्खलन में नष्ट हो गया था।1882 में इसकी पुनः स्थापना हुयी।
नैनापीक-नैनापीक नैनीताल की सबसे ऊची चोटी है
स्नाव्यू-यह बहुत ही खूबसूरत स्थल है। गर्मीयों में यहां सैलानी छुटीयां बिताने आते हैं। यहां रज्जू मार्ग द्वारा भी पहुचा जा सकता है।
नैनीझील-इस झील का नामकरण नैनी मन्दिर के नाम पर पड़ा है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शिव देवी सती के मृत शरीर को ले जा रहे थे तो उनकी आंख यहां पर गिरी और इस झील का निर्माण हो गया।
भुवाली-यह स्थल प्राकृतिक सुन्दरता एवं पर्वतीय फल बाजार के लिए प्रसिद्व है।
भीमताल-यह नैनीताल भुवाल मार्ग पर स्थित सोन्दर्यपूर्ण झील है यह झील आकार में नैनीझील से बड़ी है। झील के मध्य में द्वीप है जिस पर एक रेस्टोरेन्ट स्थित है।
कैंची धाम-नैनीताल-अल्मोड़ा मार्ग पर भुवाली से करौली महाराज द्वारा स्थापित यह मन्दिर आज तीर्थाटन का एक महत्वपूर्ण स्थान बन गया है। यहां प्रतीवर्ष 15 जून को विशाल भण्डारे का आयोजन होता है।
कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान-1935 में हैली राष्ट्रीय उद्यान के नाम से स्थापित इस उद्यान को वर्तमान नाम 1957 में मिला। इस पार्क का प्रवेश द्वार ढिकाला(नैनीताल) में
है
घोड़ा खाल- यहां पर न्याय का देवता गोलू देवता का मन्दिर है।
काठगोदाम- काठगोदाम बागेश्वर, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ व सम्पूर्ण कुमाउ का सबसे महत्वपूर्ण रेलवे स्टेशन है। इस कुमाउ का प्रवेश भी कहते हैं।यह स्टेशन 1884 में चालू हुआ था। 1994 में इसे बड़ी रेलवे लाइन बनाया गया।
मुक्तेश्वर- यह नगर बुरांस तथा बांज के वृक्षों से धिरा हुआ है। यहां पर भारतीय पशु चिकित्सा शोध संस्थान तथा मुक्तेश्वर मंदिर भी स्थित है।
अल्मोड़ा
अल्मोड़ा नगर कत्यूरि राजाओं द्वारा बसाया गया था। प्राचीन 14वी सदी में यहां पर कत्यूरियों द्वारा
बनाया गया खगमरा किला था। बाद में चन्द राजा भीष्म चन्द्र ने अपनी राजधानी चम्पावत से हटाकर
अल्मोड़ा कर दी। यह नगर चन्द तृतीय के समय मे बनकर पूर्ण हुआ।ं 15 वीं से 16 वीं सदी में इस क्षेत्र का विकास
बहुत तेजी से हुआ।
इस जिले के प्रमुख स्थल निम्न है
1-ब्राइड एंड कार्नर
2-राम शिला मन्दिर
3-नन्दा देवी
4-गणानाथ
5-कटारमल सूर्य मंदिर
6-चितई मंदिर
7-सोमेश्वर
8-शीतलाखेत
9-जालना
10-जागेश्वर मंदिर समूह
11-द्वाराहाट मन्दिर समूह
12-विभाण्डेश्वर
13-दूनागिरी
14-रानीखेत
15-चौबटिया
16-झूला देवी राम मंदिर
17-तारीखेत
ब्राइड एंड कार्नर-यह स्थान सूर्यास्त एवं सूर्योदय के लिए अतिप्रसिद्व है। यहीं पर डियर पार्क भी स्थित है।
नन्दा देवी-यहां प्रतिवर्ष भाद्रपद की अष्टमी को विशाल मेला लगाया जाता है। यह मन्दिर मध्यकालीन
कला उत्कृष्ट कला का उदाहरण है।
गणनाथ-अल्मोडा-ताकुला मार्ग पर स्थित एक गुफा में स्थित एक शिव मन्दिर है। यहां शिवलिंग पर पाकृतिक
रूप से जल टपकता हैै। इसकी चोटी पर मल्लिका देवी का मन्दिर है।
कटारमल सूर्य मन्दिर-यह मन्दिर अपनी काष्ठकला के लिए विश्व प्रसिद्व है। इस मन्दिर का कपाट राष्ट्रीय संग्रहालय
नयी दिल्ली में रखा हुआ है। इस मन्दिर की मुख्य प्रतिमा सूर्य की है। इस मन्दिर को 9वी से 10वी शती में राजा
कटारमल ने बनाया था।
चितई मंदिर-यह मन्दिर न्याय के देवता गोलू देवता का मन्दिर है। यहां आने वाले सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण
होती है।
सोमेश्वर-अल्मोड़ा कौसानी मार्ग पर सोमेश्वर नगर का निर्माण चन्द राजा सोमचन्द ने कराया था
जागेश्वर मंदिर समूह-यह मंदिर छोटे बड़े कई मंदिरों का समूह है। यह राज्य का सबसे बड़ा मंदिर समूह तथा हिंदुओ
का पवित्र धार्मिक स्थल देवदारों के वृक्षों से घिरा हुआ है। यहां का सबसे प्राचीन मंदिर मृत्युंजय मंदिर व सबसे विशाल
मंदिर दिनदेशवारा है। यहां से कुछ ही दूरी पर प्राचीन वृद्व जागेश्वर मंदिर है। यहां जागनाथ, महामृत्यूंजय,पंचकेदार,डंडेश्वर
कुबेर,लक्ष्मी, व पुष्टि देवी के मंदिर हैं। इस मंदिर समूह का निर्माण कत्यूरी राजा शालिवाहन देव ने कराया था।
द्वाराहाट मंदिर समूह-यह नगर अल्मोड़ा से 170 किमी दूर है। इसे हिमालय की द्वारिका के नाम से भी जाना जाता है।
यह मंदिर का निर्माण कत्यूरी राजाओं के द्वारा किया गया है।
विभाण्डेश्वर-यहां प्रतिवर्ष विषुवत संक्रान्ति के अवसर पर यहां स्याल्दे बिखोति का
प्रसिद्व मेला लगता है।
रानीखेत-यहां पर कुमाउं रेजीमेन्ट का मुख्यालय एवं एक संग्रहालय है। कहा जाता है
कि चन्द राजाओं की रानी जियारानी इधर से जा रही थी। उन्हें यह स्थान अच्छाा लगा
और वह कुछ दिनों तक यहां रूकी। जहां पर वह रूकी थी वहां पर खेत था। बाद में
वह खेत रानीखेत नाम से प्रसिद्व हो गया।
चौबटिया-चौबटिया रानीखेत के समीप ही स्थित है। इसे आर्चड कन्ट्री(फलाद्यान का देश)
ेेके नाम से भी जाना जाता है।
पिथौरागढ़
इस जिले की स्थापना 24 फरवरी, 1960 को इस जिले की स्थापना की गई और इसका मुख्यालय पिथौरागढ़ नगर में स्थापित किया गया। इस जिले
के मुख्य पर्यटक स्थल इस प्रकार हैं।
मुनस्यारी - जौहर क्षेत्र का प्रवेश द्धार मुनस्यारी है। गौरी एवं काली नदी का संगम यहीं पर हुआ है।
मिलम ग्लेशियर- पिथौरागढ़ से लगभग 208 किमी दूर मुनस्यारी तहसील में यह ग्लेशियर कुमाउॅ का सबसे
बड़ा ग्लेशियर है। इसके बाद किंगरी बिंगरी
दर्रा पड़ता है।
नारायण आश्रम-यह आश्रम जिला मुख्यालय में धारचूला तहसील में स्थित है।
गंगोलीहाट-यह स्थल महाकाली मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। इसकी स्थापना शंकराचार्य द्धारा शक्ति पीठ के रूप में की गई थी।
हाटकालीका मंदिर-गंगोलीहाट में स्थित हाट-कालिका देवी रणभूमि में गये जावनों की रक्षक मानी जाती है।
पातालभुवनेश्रवर- गंगोलीहाट के पास पाताल भुवनेश्वर मन्दिर एक गुफा के भीतर स्थित है। जिसमें सूर्य,विष्णु, उमा-महेश्वर, आदि
की कई प्राचीन व उत्कृष्ट मूर्तियां हैं
रामेश्वर-पिथौरागढ़ से 35 किमी दूर स्थित रामगंगा और सरयू नदी के संगम पर यह प्रसिद्ध शिव मंदिर है।
अस्कोट-यहां सर्वाधिक कस्तूरी मृगों वाला वन्य जीव बिहार है।
कैलाश मानसरोवर यात्रा-कैलाश मानसरोवर की यात्रा जनपद पिथौरागढ़ से ही होकर जाती है। कुमाउ मंडल
विकास निगम द्धारा संचालित यह यात्रा नई दिल्ली से उ.प्र. से ऊ.सि.न. से धारचूला से तवाधाट से सिरखा
से गलागढ़ से गुंजी से बुल्ली से कालापानी से नाभिढांग से तकलाकोट से कैलाशमानसरोवर पहुचती है।
जयन्ती मंदिर(ध्वज मंदिर)- डीडीहाट मार्ग पर टोटानाला नामक स्थल से कुछ किमी कठिन उचाई चढने पर
एक प्रसि़द्ध मंदिर है।
बागेश्वर
बागेश्वर अल्मोढ़ा से 90 किमी की दूरी पर अल्मोढ़ा पिण्डारी मार्ग पर स्थित एक जिला है। जिसे उत्तर का वाराणसी कहा जाता है। इसे प्राचीन काल में व्याघ्रेश्वर भी कहते हैं।सरयू,गोमती और

बागेश्वर के प्रमुख दर्शनीय स्थल इस प्रकार है।
बागनाथ मंदिर-
कौसानी-
पिण्डारी ग्लेशियर-
कोट भ्रामरी व नन्दा मन्दिर-
पाण्डुस्थल-
बागनाथ मंदिर - बागेश्वर में मध्य में स्थित व सरयू व गोमती नदी के संगम पर स्थित यह बागनाथ भगवान शिव का बहुत प्रसिद्ध मंदिर है।
कौसानी-गोमती व कौसी नदियों के बीच पर बसा पिंगनाथ पहाड़ी पर बसा यह अत्यन्त विशिष्ट नगर कौसानी एक पर्यटक स्थल है।
यहां का मुख्य आर्कषण हिमालय दर्शन व सूर्योदय व सूर्यास्त के दृश्य हैं। यहां से चौखम्बा, त्रिशूल, नन्दा देवी, नन्दा कोट, पंच चूली, और
नन्दा घूंघटी की सभी चोटियां स्पष्ट दिखाई देती हैं। 1929 में महात्मा गॉधी यहॉ पर 12 दिन तक रहे तथा अपने लेख ‘यंग इंडिया’ में उन्होंने
कौसानी को ‘भारत का स्वीटजरलैंड’ कहा था। गांधी जी यहीं अनाशक्ति आश्रम में गीता का अनाशक्ति योग लिखा था। यहीं पर गांधीजी की शिष्या
सरला बहन का लक्ष्मी आश्रम भी है। यह महान प्रकृति प्रेमी सुमित्रानन्दर पन्त की जन्म स्थली है।
कौसानी के निकट ही पिनाकेश्वर महादेव , बूरा पिननाथ एवं भटकोट आदि प्रसिद्ध स्थल भी हैं।
बैजनाथ- यह बागेश्वर से 25 किमी की दूरी पर मंदिरो का एक समूह है। बैजनाथ के मुख्य मंदिर में आदम के आकार की पार्वती की मूर्ति स्थापित है
बैजनाथ का मंदिर कत्यूरी शासकों द्धारा बनाया गया।
पिण्डारी ग्लेशियर- यह ग्लेशियर बहुत आर्कषक तथा पिण्डारी नदी का उदगम स्थल है। यहां ब्हमकमल, मोनाल, व बुरांस आदि के वृक्ष देखे जा सकते
हैं।
कोट भ्रामरी का मंदिर-बैजनाथ से कुछ दूरी पर डंगोली के पास भ्रामरी का मंदिर स्थापित है।
पाण्डुस्थल-कुमाउ व गणवाल की सीमा पर यह पाण्डवों के अज्ञातवास के कारण प्रसिद्व स्थल है। यहां कृष्ण जन्माष्टमी का प्रसिद्ध मेला लगता है।
चम्पावत
15 सितम्बर, 1997 को इसे जनपद का रूप दिया गया था। चम्पावत 953 ई. से 1563 ई. तक चन्द्रवंशीय राजाओं की
राजधानी रही थी।
चम्पावत का प्राचीन नाम कुमुं है। काली नदी होने केे कारण इसें कुमुं काली भी कहते हैं।
इसका मूल नाम चम्पावती है।
चम्पावत के प्रमुख दर्शनीय स्थल अधोलिखीत हैं।
बालेश्वर मन्दिर - यह मन्दिर शिल्पकला की दृष्टि से जिले का सर्वोत्कृष्ट मंदिर है।
इस मंदिर का निर्माण चन्द्र वंशीय राजाओं ने कराया था।
क्रान्तेश्वर महादेव - चम्पावत नगर में क्रान्तेश्वर महादेव का मन्दिर उंचे पर्वत शिखर पर स्थित है।
इसे कुर्मापद या कानदेव के नाम से भी जाना जाता है।
नौ ढुंग्गाधर(नौ पत्थर का मकान) - यह चम्पावत - पिथौरागढ मार्ग पर पड़ता है। इस मकान के किसी भी कोने से गिनने
पर 9 ही पत्थर मिलतें हैं।
एक हथिया नौला-जब चन्द राजाओं ने श्री जगन्नाथ मिस्त्री से बालेश्वर मन्दिर बनवाया था तो राजा ने ऐसी कला का अन्यत्र प्रचार-प्रसार
न हो सके इस हेतु मिस्त्री का दहिना हाथ कटवा दिया । तब मिस्त्री ने अपनी लड़की कुमारी कस्तूरी की मदद से बालेश्वर मन्दिर से भी ज्यादा
भव्य कलात्मक इस ऐतिहासिक नौला(बाबला) का निर्माण कर चन्द्र राजाओं के घमण्ड को तोड़ा। यह कलात्मक दृष्टि से एक अद्भुत नमूना है।
बाणासुर का किया - यह स्थान चम्पावत मुख्यालय से मात्र 16 किमी तथा लोहाघाट से 4 किमी की दूरी पर एक शिखर पर है। बाणासुर को शिव
का अनन्य भक्त माना जाता है।
मायावती आश्रम-यहां पर स्वामी विवेकानन्द को आध्यात्मिक शान्ति प्राप्ति हुयी थी। तब उन्होंने यहां पर 1901 में रामकृष्ण शान्ति मठ नाम की स्थापना की थी।
इससे पूर्व यहां पर अद्धेत आश्रम था।
ग्वाल देवता - लोहाघाट के पास स्थित इस मंदिर के देवता को गोरिल या न्याय के अधिष्ठाता देवता या गालू देवता के रूप में जाना जाता है।
देवीधुरा - रक्षाबन्धन के अवसर पर यहां आसाड़ कौतिक मनाया जाता है। जिसे बग्वाल मेल के नाम से भी जाना जाता है। इस खेल के बारे में कार्बेट ने अपनी पुस्तक
‘मैन ईटर ऑफ कुमाउ’ में भी लिखा है।
पंचेश्वर - यह स्थल चौमुॅह के मन्दिर के लिए प्रसिद्ध है। चौमुॅह को पशुरक्षक के रूप में पूजा जाता है। मन्दिर भगवान श्वि को समर्पित है।
श्यामताल - इस झील के तट पर स्वामी विवेकानन्द आश्रम स्थित है।नीले रंग की श्यामताल झील 1.5 किमी में फैली हुयी है।
मीठा-रीठा साहिब- लोधिया एवं राटिया नदियों के संगम पर स्थित इस स्थल पर 1960 में गुरूद्धारे का निर्माण कराया गया था। गुरूद्धारे के प्रागण में मीठे रीठे के वृक्ष हैं। कहा जाता है कि गरूनानक देव ने इस
स्थान की यात्रा की थी और यहां के गोरखपंथी जोगियों के साथ आध्यात्मिक विचार विमर्श किया था।
पुर्णागिरी मन्दिर - पूर्णागिरी मन्दिर शक्तिपीठ टनकपुर से कुछ दूरी पर स्थित है।चैत्र नवरात्र में यहां मेला लगता है। देश में 108 शक्तिपीठ में यह भी एक शक्तिपीठ है। यहां सती जी का नाभि अंग गिरा था।
पाताल रूद्रेश्वर गुफा - पवित्र गुफा पाताल रूद्रेश्वर की खोज सन्1993 में 14 वर्षीय बालक के स्वप्न मे मंा दुर्गा के दर्शन एवं उसे गुफा के बारे में बताने के बाद हुई।
यह गुफा चम्पावत के बारसी गांव में स्थित है।
ऊधमसिंह नगर
पहले यह जिला नैनीताल जिले में था 1995 में इसे जिला बनाया गया। यह जिला
तीन उपभागों (रूद्रपुर,काशीपुर, व खटीमा) से मिलकर बना है। यहां थारू
एवं बोक्सा जनजाति के लोग भी रहते हैं। इसका अधिकांश भाग समतल है देश के
अन्य भागों से यह रेल एवं सड़क मार्गों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।
इस जिले के प्रमुख दर्शनीय स्थल निम्न प्रकार हैं।
रूद्रपुर - ऊधमसिंह नगर जिले का मुख्यालय रूद्रपुर राज्य के तराई क्षेत्र का एक प्रमुख
औद्योगिक नगर है। यहां कृषि विकसित अवस्था में है।
नानकमत्ता साहिब-यह सिक्खों का एक पवित्र स्थल है। इसके पास ही
विशाल नानक सागर बांध भी है।
अटरिया देवी मन्दिर-यहां नवरात्र में भारी भीड़ रहती है।
काशीपुर- गुमानी पन्त जी की जन्मस्थली काशीपुर ही है। हर्षकाल में चीनी यात्री
युआन चांग ने इस नगर को देखा था। उस समय इसे गोविषाण कहते थे।
चैती देवी मन्दिर- काशीपुर-बाजपुर मार्ग पर काशीपुर बस स्टेशन से 2.5 किमी की दूरी
पर है।
गिरी सरोवर- काशीपुर-रामनगर मार्ग पर काशीपुर स्टेशन से 2 किमी की दुरी पर एक
मनोहर झील है।
पंत नगर - 17 नवम्बर 1960 को नेहरू ने यहां पर 16 हजार एकड़ क्षेत्र में पहले कृषि
विश्वविधालय की स्थापना की थी
Nice GK of uttarakhand
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ReplyDeletecheck our details about
हरिद्वार के दर्शनीय स्थल मंदिर
आपके द्वारा प्रदान जानकारी के लिए हृदय से आभार
ReplyDeleteचमोली का संक्षिप्त विवरण